सीमंतोन्नयन संस्कार
🪷 *सीमंतोन्नयन संस्कार* 🪷
भारतीय संस्कृति में मनुष्य का जीवन केवल जैविक नहीं, बल्कि एक पवित्र, दैविक यात्रा माना गया है। जन्म, जीवन और मृत्यु को संस्कारों के माध्यम से शुद्ध, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण बनाया जाता है। ऋषियों ने कहा है – *“संस्कारो हि मनुष्याणां भेदं कुर्वन्ति पशुभिः।”* अर्थात् संस्कार ही मनुष्य को पशु से अलग करते हैं।
सोलह संस्कारों में गर्भ-संस्कार विशेष महत्व रखते हैं। गर्भाधान, पुंसवन और सीमंतोन्नयन संस्कार का क्रम इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है कि ये केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का आधार भी हैं। सीमंतोन्नयन संस्कार विशेषतः मातृ-मन और गर्भस्थ शिशु की चेतना को उज्ज्वल और संतुलित बनाने वाला संस्कार है। यह मातृ-मन को प्रसन्न, शांत और स्थिर करता है, जिससे शिशु के भीतर सात्त्विक संस्कार स्थापित होते हैं।
सीमंतोन्नयन संस्कार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि माता और गर्भस्थ शिशु के बीच एक आत्मिक संवाद भी है। यह संस्कार गर्भावस्था के चौथे, छठे या आठवें महीने में किया जाता है, जब भ्रूण का मस्तिष्क और इंद्रियाँ विकसित हो रही होती हैं। इस समय माता की मानसिक स्थिति का सीधा प्रभाव शिशु पर पड़ता है।
*1. शब्दार्थ और मूल अर्थ*
“सीमंतोन्नयन” शब्द दो भागों से बना है – सीमन्त और उन्नयन।
*सीमन्त* – मस्तक का मध्य भाग, जिसे आज हम मांग या सिर की रेखा कहते हैं, बल्कि मानसिक/आध्यात्मिक सीमा को भी संकेत करता है।
*उन्नयन* – ऊपर उठाना, आलोकित करना या स्पर्श करना।
अतः सीमंतोन्नयन का भावार्थ है – मातृ-मस्तक को पवित्र मंत्रों से स्पर्श कर, उसके मन, विचार और चेतना को उन्नत करना। यह संस्कार मातृ-मन को प्रोत्साहित करता है और भ्रूण में सात्त्विक गुणों के विकास की प्रक्रिया शुरू करता है।
संस्कार के दौरान माता को शुद्ध वस्त्र पहनाए जाते हैं, और उसके सामने दीपक, पुष्प और धूप रखे जाते हैं। पति या प्रमुख पुरोहित वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए मस्तक पर केशों को तीन बार ऊपर की ओर विभाजित करते हुए स्पर्श करते हैं। मंत्रोच्चारण के साथ कहा जाता है – *“तेजस्विनी भव, प्रसन्ना भव, धैर्यं धारय।”*
अर्थ: हे देवी! तू तेजस्विनी हो, प्रसन्न रह और धैर्य धारण कर।
संस्कार केवल बाह्य क्रिया नहीं, बल्कि मातृ-मन और गर्भस्थ शिशु के बीच आध्यात्मिक संवाद है। इस क्रिया के दौरान माता के मन में प्रसन्नता, ध्यान और शांति उत्पन्न होती है, जिससे शिशु के भीतर सकारात्मक और सात्त्विक संस्कार विकसित होते हैं।
*2. वेदों में सीमंतोन्नयन*
वेदों में सीमंतोन्नयन संस्कार को जीवन के सृजन-चक्र का आध्यात्मिक सूत्र माना गया है। चारों वेदों में ऐसे मंत्र पाए जाते हैं, जो गर्भ, शिशु और मातृत्व की मंगलकामना करते हैं।
*ऋग्वेद (10.184.2) –*
*“मा त्वा गर्भं हिंसतु प्रजापतिर्भगः, सोमो राजा प्रजापतिर्जनयातु ते शुभम्।”*
अर्थ: हे देवी! तुम्हारे गर्भ को कोई पीड़ा न पहुंचे, प्रजापति और सोमराज तुम्हें शुभ और स्वस्थ संतान प्रदान करें।
*यजुर्वेद (8.43) –*
*“यत्ते गर्भे हृदयं तत् प्रजापतिर्दधातु धीमन्तं यजमानं च।”*
अर्थ: गर्भ में हृदय में प्रजापति बुद्धिमान, यशस्वी और तेजस्वी संतान का बीज रखें।
*अथर्ववेद (6.11.3) –*
*“गर्भं ते अश्विनौ धारयेतामायुर्देहि सुताय ते।”*
अर्थ: अश्विनीकुमार तुम्हारे गर्भ की रक्षा करें और पुत्र को दीर्घायु प्रदान करें।
वेदों में दिए गए ये मंत्र स्पष्ट करते हैं कि सीमंतोन्नयन संस्कार केवल बाह्य कर्म नहीं, बल्कि माता और शिशु के जीवन में मंगल-संवेदनाओं का प्रतिष्ठापन है।
*3. उपनिषदों में गर्भ और चेतना*
उपनिषदों में गर्भ को चेतना का प्रारंभिक केंद्र कहा गया है। छांदोग्य उपनिषद (6.2.1) में उल्लेख है –
*“सत्यं खल्विदं सर्वं, तस्मात् सत एव सोम्येदं अग्र आसीत्।”*
इससे यह स्पष्ट होता है कि गर्भधारण का क्षण ही चेतन तत्व का प्राकट्य है। ऋषियों के अनुसार, माता के मनोभाव, वाणी और स्पर्श तीनों ही गर्भस्थ शिशु को संस्कारित करते हैं। इसलिए भ्रूण को *“श्रुतवान् जीव”* कहा गया है जो जन्म से पहले सुनने और सीखने वाला माना गया है। सीमंतोन्नयन संस्कार उसी समय किया जाता है जब भ्रूण की चेतना जागृत होने लगती है। इस संस्कार से मातृ-चेतना के माधुर्य और सात्त्विकता का प्रभाव बालक में प्रवाहित होता है।
*4. गृह्यसूत्रों में सीमंतोन्नयन
गृह्यसूत्रों (आश्वलायन, पारस्कर, शांखायन) में इस संस्कार की विस्तृत विधि बताई गई है।
*आश्वलायन गृह्यसूत्र (1.13.1)* – “सीमन्तोन्नयनं तु गर्भिण्याः शान्त्यर्थं विधीयते।”
अर्थ: गर्भवती स्त्री की शांति और संतुलन के लिए संस्कार किया जाता है।
*पारस्कर गृह्यसूत्र (2.1.12)* – “गर्भिण्याः सीमन्तं मन्त्रोपस्पर्शं कुर्यात्, शुभे मासे शुभे तिथौ।”
अर्थ: शुभ मास और तिथि में माता के मस्तक को मंत्रों से स्पर्श करके संस्कार करें।
*शांखायन गृह्यसूत्र (1.24.7)* – “माता भवति प्रसन्ना, तस्माद्देवाः प्रसन्ना भवन्ति।”
अर्थ: माता की प्रसन्नता से देवता प्रसन्न होते हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि सीमंतोन्नयन संस्कार का मुख्य उद्देश्य माता के भीतर शांति, आत्मविश्वास और सात्त्विकता उत्पन्न करना है।
*5. विधि और प्रतीकात्मक अर्थ*
सीमंतोन्नयन संस्कार की विधि में माता को शुद्ध वस्त्र पहनाया जाता है। सामने दीपक, पुष्प और धूप रखे जाते हैं। पति या पुरोहित वैदिक मंत्रों के साथ माता के मस्तक पर केशों को तीन बार ऊपर की ओर विभाजित करते हुए स्पर्श करते हैं।
मंत्रोच्चारण के साथ कहा जाता है –
*“तेजस्विनी भव, प्रसन्ना भव, धैर्यं धारय।”*
अर्थ: हे देवी! तू तेजस्विनी हो, प्रसन्न रह और धैर्य धारण कर।
संस्कार के पश्चात् मधुर संगीत, कथा, भजन या वेदपाठ सुनाया जाता है। इसका उद्देश्य मातृ-मन में प्रसन्नता, शांति और संतुलन बनाए रखना है। यही परंपरा आधुनिक विज्ञान द्वारा Prenatal Psychology के रूप में स्वीकार की जाती है।
संस्कार केवल बाह्य कर्म नहीं, बल्कि मातृ-मन और गर्भस्थ शिशु के बीच आध्यात्मिक संवाद है। मातृ-मन की शांति और संतुलन सीधे शिशु के मस्तिष्क और चेतना पर प्रभाव डालते हैं।
*6. सीमंतोन्नयन और गर्भसंस्कार परंपरा*
गर्भसंस्कार भारतीय ऋषियों की अनुपम देन है। इसमें यह मान्यता रही है कि संस्कार गर्भ में ही आरंभ हो जाते हैं।
*गर्भाधान* – शरीर का संस्कार।
*पुंसवन* – प्राण का संस्कार।
*सीमंतोन्नयन* – मन का संस्कार।
सीमंतोन्नयन मातृत्व का महोत्सव है। इसमें माता ही यज्ञकुंड और उसकी चेतना ही आहुति होती है। जब माता के भाव सात्त्विक होते हैं,तब वही सात्त्विकता बालक की आत्मा में प्रतिष्ठित होती है।
*7. वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व*
आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि गर्भावस्था के दौरान माता का मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक वातावरण भ्रूण के विकास को प्रभावित करता है। Epigenetics के अनुसार, माता की भावनात्मक स्थिति भ्रूण के जीन-एक्सप्रेशन को प्रभावित करती है। आधुनिक अनुसंधान में माता की भावनात्मक स्थिति, संगीत, मंत्र और सकारात्मक वातावरण का नवजात शिशु के न्यूरोलॉजिकल विकास पर साक्ष्य आधारित प्रभाव पाया गया है।
वेदों ने यह सदियों पहले ही कहा –
*“माता प्रसन्ना भवेत्, पुत्रः पुण्यवान् भवति।”*
सीमंतोन्नयन संस्कार इसी वैज्ञानिक सत्य को वैदिक रूप में व्यक्त करता है। मंत्र, संगीत, सुगंध, स्पर्श और प्रसन्नता के माध्यम से माता के तंत्रिका-संवेदनाओं को शांति प्रदान की जाती है, जिससे भ्रूण का मस्तिष्क संतुलित और शांत बनता है।
*8. सामाजिक और पारिवारिक महत्त्व*
भारतीय परिवारों में सीमंतोन्नयन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि परिवार और समाज का स्नेह-संविलयन भी है। गर्भवती माता को इस दिन विशेष सम्मान, आशीर्वाद और उपहार दिए जाते हैं। यह दिन माता के “जननी स्वरूप” के उद्घोष का दिन होता है। परिवार और समाज के सदस्य मिलकर माता और शिशु के कल्याण की मंगलकामना करते हैं। संस्कार स्त्री के प्रति आदर, प्रेम और संवेदना का संस्कार भी उत्पन्न करता है।
*9. आधुनिक संदर्भ में पुनरुत्थान*
आज जीवन की गति तेज और गर्भवती स्त्रियाँ मानसिक तनाव, चिंता और भय से ग्रस्त रहती हैं। ऐसे समय में सीमंतोन्नयन संस्कार का पुनरुत्थान अत्यंत आवश्यक है। आज यह संस्कार “गर्भ-संस्कार सत्र” के रूप में पुनर्जीवित हो रहा है। माताएँ ध्यान, योग, वैदिक संगीत और प्रार्थना के माध्यम से गर्भस्थ शिशु से संवाद करती हैं। यह भारतीय वैदिक विज्ञान का पुनर्प्रकाश है।
*10. आध्यात्मिक संकेत*
सीमंतोन्नयन का अर्थ है – सीमा का उन्नयन। यह स्वयं की सीमित चेतना से ऊपर उठकर ब्रह्मचेतना में प्रवेश का प्रतीक है। माता के मस्तक पर बनाई गई रेखा केवल मांग की अलंकरण नहीं, बल्कि सुषुम्ना नाड़ी के मार्ग को जागृत करने का प्रतीक है। यह संस्कार केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक साधना भी है। माता का मन जब शांत और प्रसन्न होता है, तो उसकी ऊर्जा और प्राणशक्ति सहजता से गर्भस्थ शिशु तक पहुँचती है। यही कारण है कि इस संस्कार का प्रभाव बच्चे के जीवन में दीर्घकालिक और सकारात्मक होता है।
*11. निष्कर्ष*
सीमंतोन्नयन संस्कार का सार यही है कि मातृत्व स्वयं एक यज्ञ है। इसमें भाव, विचार और कर्म तीनों की पवित्रता आवश्यक है। गर्भ केवल शरीर नहीं, बल्कि चेतना का बीज है। उस बीज की रक्षा, पोषण और संस्कार केवल माँ के माध्यम से संभव है।
जीवन के संस्कार-क्रम में सीमंतोन्नयन संस्कार अनिवार्य है, क्योंकि यह भावी पीढ़ी के संस्कारों की दिशा तय करता है।
संस्कार हमें निम्न संदेश देता है –
*“संस्कार गर्भ में ही आरंभ होते हैं, और माँ की मुस्कान ही उस संस्कार की पहली आहुति है।”*
सीमंतोन्नयन संस्कार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मातृत्व, चेतना, समाज और संस्कृति का पवित्र सूत्र है। यह संस्कार माता और शिशु के जीवन में मंगल-संवेदनाओं का प्रवाह स्थापित करता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में सीमंतोन्नयन संस्कार को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है।
✍️ योगेश गहतोड़ी “यश”



