
वन की गंध,
मन में उठे कथा
राम सुगंध।
सरयू तीर
मौन बहे छंदों में —
राम विचार।
अंतर गुंथे,
सीता-राम ही गूँजें
भाव सिंधु से।
पर्ण कुटी में,
लेखनी तप में लीन —
शब्द यज्ञ में
ऋषि विचार,
कथा रमे श्वास में —
राम साकार।
धरा सुनती,
राम नाम की रेखा —
मन गुनती।
ऋषि की दृष्टि,
वन होता मंदिर —
राम की सृष्टि
करुणा झरे,
छंदों में अमृत-सा —
नाम उभरे।
नीरव बेला,
लेख बनें आराधन —
राम का खेला
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




