साहित्य

ठंड में तुम

डॉ रामशंकर चंचल

ठंड से ठिठुरती
तेरी यादें
आ कर दस्तक देती है
दिल और दिमाग में
बड़े प्यार से पनाह देता हूं
और बीत जाती हैं
सुख सुकून देती
रात, किसी अद्भुत
अपनत्व का अहसास कराती
और तब ठंड होती हैं
मुझे से कोसों दूर
कांपती सी
तब मुझे उस पर दया आ जाती
और उसके सुख सुकून के लिए
न चाहते हुए भी
रजाई ओढ़ कर
उसका सम्मान करता हुआ
मन ही मुस्कराते हुए
सोचता हूं
वह ठंड ही तो थी
जब तुम गहरे महरूम
रंग के स्वेटर में
आंगन में दस्तक दी थी
तुम्हें भी पता है
यह मेरा प्रिय रंग है
वो सुखद यादें जो
सदा ही जिंदा रखती हैं
ठंड की देन ही तो है
फिर ठंड से क्या
यही सोच अक्सर
ठंड का स्वागत करते हुएं
महरूम रंग के
स्वेटर में निकल जाती हूं
दूर बहुत दूर
तुम्हें करीब महसूस करते
साथ साथ तुम्हारे
चल जाता हूं
अजीब आनंद महसूस करते

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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