
जिसको हमने अपनाया वो हुआ नहीं हमारा
जमीं नहीं आकाश ने मुझे समझा नहीं गवारा
जिसको हमने अपनाया वो हुआ नहीं हमारा।
लोगों की बातें मानी कि फर्क नहीं समझो तुम
होता है पराया अपना ये तर्क नहीं समझोगे तुम
पत्थर का बना वह निकला निकला बना अंगारा।
जिसको हमने अपनाया वो हुआ नहीं हमारा।।
इस जग की रीत पुरानी किया तो भरोसा टूटा
जिसको समझा मैं अपना, उससे ही मैं तो लूटा
गैरों से जहां मैं जीता, अपनो से वहां मैं हारा।
जिसको हमने अपनाया वो हुआ नहीं हमारा।।
नदी का जल बहता है उन पर भी भरोसा करता
अपने ही सुकर्म के द्वारा, जो भी होता संवरता
जो मिला मुझे जीवन में, वो छूट गया किनारा।
जिसको हमने अपनाया वो हुआ नहीं हमारा।।
विद्या शंकर विद्यार्थी रामगढ़, झारखंड


