साहित्य

कविता

हम सबके सपनों का भारत

डॉ गीता पांडेय अपराजिता

हम सबके सपनों का भारत हमको प्राणों से प्यारा।
विश्व पटल पर छाप छोड़ता अतुलनीय है जो न्यारा।।

इसकी संस्कृति दिव्य अनूठी पावन इसकी परिपाटी।
रामकृष्ण की पुण्य धरा यह चंदन इसकी है माटी।।

भारत मांँ का चरण पखारें निशदिन यहांँ नदीश रहें।
प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय बैठे जहांँ गिरीश रहें।।

प्रकृति सुंदरी जहांँ बिहसती हंँसती अरु मुस्काती है।
विहगों का सुंदर मृदु कलरव कोयल गीत सुनाती है।

हम सबके सपनों का भारत सुंदर और विशाल बने।
जाति वर्ण का भेद न होवे भारत मांँ खुशहाल बने।।

नर नारी सब शिक्षित होंवे लेश मात्र भी भेद न हो।
हर नारी को सम्मान मिले किंचित उसमें खेद न हो।।

पढ़े-लिखे को रोजगार मिले तब अच्छा व्यापार चले।
ऊंँच-नीच का भेद न होवे आपस में सब मिलें गले।।

धर्म कर्म में सभी निरत हों अपकरुण हृदय से दूर रहे।
रोटी कपड़ा और मकाँ हो जन सुविधा भरपूर रहे।।

समुचित शिक्षा उचित चिकित्सा दीन-हीन को सदा मिले।
मुस्कान अधर हर छा जाए उर में प्रमुदित सुमन खिले।।

हम अनेक फिर भी एक हैं यह विचार हो भारत में।
धर्म पंथ मजहब से दूरी सबसे प्यार हो भारतमें।।

डॉ गीता पांडेय अपराजिता
रायबरेली उत्तर प्रदेश

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