साहित्य

कार्तिक मास (दोहा)

किरण कुमारी 'वर्तनी'

पावन कार्तिक मास में, दीप जलाए लोग।
मिटा रहे जग से तिमिर, भगा रहे दुख रोग।।

बिछड़े अपने मिल गए, आए ज्यों त्यौहार ।
चहक रहा है अंगना ,सजा लगे घर द्वार ।।

नाचे -गाए संग में , खाते- पीते संग।
बीत गया क्षण शीघ्र ही, खुशियों में यूंँ रंग।।

लौट रहे हैं लोग अब, तजकर अपना गेह।
मन रह जाता है यही , जाती है बस देह।।

चुरा रहे हैं नैन को, किससे कहते पीर।
दुःख बिछड़ने का बहुत, सहज सहे है धीर।।

ताला लटका गेह पर, तम छाया घनघोर ।
द्वार प्रतीक्षा में खड़ी,कब आएगी भोर।।

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