
भ्रष्टाचारी अंदर नहीं तो, ये किसकी गलती है।
जनता बेचारी पीस रही, सिर्फ हाथ ही मलती है।
चुनाव में ही क्यों भ्रष्टाचार का, मुद्दा उछाला जाता है।
बड़ी बड़ी फिर बातें होती, बाद में अंदर घुसाया जाता है।
अंदर अंदर यहाँ पर देखों, खिचड़ी पकती रहती है।
भ्रष्टाचारी अंदर नहीं तो, ये किसकी गलती है।
(2)
कोई दूध का धुला नहीं है, अपनी नजर फिराओ जरा।
सब एक थाली के चट्टे बट्टे, सही न हो तो बताओ जरा।
भ्रष्टाचार के ही धन से, सत्ता बनाई जाती है।
कालेधन की बदौलत, सरकार गिराई जाती है।
इसमें जनता कैसे दोषी, सुन ये बात बहुत खलती है।
भ्रष्टाचारी अंदर नहीं तो, ये किसकी गलती है।
(3)
अपनी सुविधा बढ़ाने वास्ते, सब एक हो जाते हैं।
जनता को कुछ देना हो तो, सौ लेकुना लगाते हैं।
जनता के धन को यदि, जनता पर खर्च करते हैं।
कितना एहसान जताते, मंचों से हरदम बकते हैं।
देश की नईया इसिलिए, डगमग डगमग चलती है।
भ्रष्टाचारी अंदर नहीं तो, ये किसकी गलती है।
(4)
जब तक चोर मवाली गुंडे, संसद भेजें जाएंगे।
देश का भला नहीं होने वाला, सब ही मारे जाएंगे।
स्वच्छ छवि के नेताओं को, सत्ता में बैठाओ तुम।
मुर्दा दारू पैसे की लालच, अपने से दूर भगाओ तुम।
तभी देश का भला होगा, भुलक्कड़ की कलम बकती है।
भ्रष्टाचारी अंदर नहीं तो, ये किसकी गलती है।
भुलक्कड़ बनारसी




