जाड़े का दिन आ गया, ठंड बढ़ रही जोर।
नित्य सबेरे देखिए,निशदिन का ही भोर।।
ठंडी धीरे बढ़ रही,बच के रहिये लोग।
कसरत प्रायः कीजिये,दूर रहे सब रोग।।
निशदिन प्रातः काल में, सदा टहलिये आप।
बिचलित होगा मन नहीं,मिट जाए संताप।।
देखो ज्यादा रात को, मत घूमें श्रीमान।
मौसम सर्दी का शुरू,मन बिचलित हो जान।।
ठंडक में गरीब सदा, मिले हैं परेशान।
उनके सेहत के लिए, कम्बल का हो दान।।
डॉ जगदीश नारायण गुप्त
“जगदीश”
बनारस✍️✍️



