साहित्य

चांद सी बेटी पे सबकी है नज़र

कवि सिद्धनाथ शर्मा * सिद्ध *

चांद सी बेटी पे सबकी है नज़र ।
सोचती कैसे कटेगा ये सफर ।।

लोमड़ी सी सोच जिसकी हो गई ।
घूर कर देखे है सहरी ये बशर ।।

मुस्कुराकर देखते उसको सभी ।
खूब सूरत होने का है ये असर ।।

छेड़खानी हो गई इक शाम जब ।
लोग जाने तब व्यवस्था है लचर ।।

खा गयी धोखा सरे बाज़ार वो ।
छप गई अखबार में सारी खबर ।।

आज भी ऐसी समस्या है बनी ।
पी रहे इस दंश का बच्चे जहर ।।

कवि सिद्धनाथ शर्मा * सिद्ध *

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