
1
जिंदगी पल – पल यों ही ढलती जा रही है।
ऐसे ही कल – कल में चलती जा रही है।।
न कोई उत्साह उमंग जीने की आदमी को।
जैसे रेत बस मुठ्ठी से फिसलती जा रही है।।
2
बीज बनो ऐसे मिट्टी में दबकर फिर उग आओ।
फल से लद कर पेड़ की तरह झुक जाओ।।
कोशिश हो हर क्षण बिखर कर संवरने की।
मीठा ही बोल सको जीवन में ऐसा रुख लाओ।।
3
कांटों से डरो नहीं तो जीवन में गुलाब मिलता है।
होली रंगों में भीग कर ही रंग गुलाल मिलता है।।
मन नियंत्रित हो आपकाऔर न कोई षडयंत्र हो।
तप कर ही हमें फिर सोने सा जलाल मिलता है।।
4
किरदार बनाओ खुशबू खुद सफर तय करती है।
प्रेम समा जाए खुद ही नफरत की शय मरती है।।
बस चार दिनों को ही मिलें हैं ये श्वास और प्राण।
जिंदादिली ही तो जिंदगी से भय को हरती है।।
रचयिता।।एस के कपूर”श्री हंस”
बरेली।।




