
हुआ अब सुखद सुहाना भोर।
अरुण झाँके प्राची के छोर॥
यामिनी भाग गयी निज धाम।
प्रात किरणें निकली अविराम॥
विहग नित कलरव में हैं मग्न।
दृश्य सुन्दर मनभावन लग्न॥
भृंग अब डोल रहा हर पात।
तितलियाँ उड़ती नित्य प्रभात॥
हवायें शीतल मंद सुगंध।
कुसुम खिलतें हैं नित निर्बंध॥
मधुर मन मोहे मधु मकरंद।
पपीहा बोले नित निस्पंद॥
मोर उपवन में करता नृत्य।
चलो अब करलें पावन कृत्य॥
राम का नाम भजें हम प्रात।
करें सत्कर्म सदा दिनरात॥
नदी अपनी धुन में गतिमान।
पेड़ झूमें नित सीना तान॥
कोकिला मधुर सुनाती गान।
पखेरू भरने लगे उड़ान॥
डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश



