
अरे जिसने तुमको भेजा है।
क्यूं भेजे में भेजा ना भेजा है।।
सुबह-शाम ठेला लगाने को।।
बर्गर, पिज्जा,मुमोज बनाने को।।
डॉक्टर कहता क्यूं आ गये भाई,
कैंसर में नाम दर्ज कराने को।।
सुबह- शाम नवयुवक आते हैं।
और फास्ट- फूड जब खाते हैं।।
उनको पता नहीं जाने कब वो,
कैंसर का शिकार हो जाते हैं।।
डॉक्टर की बात का मलाल नहीं।
अपनी सेहत का क्यूं ख्याल नहीं।।
मां बाप भी भेजें बच्चों को फिर,
क्यूं करता कोई यह सवाल नहीं।।
ज्यादा तला भुना जो खाता है।
उसकी डॉक्टर रिपोर्ट दिखाता है।।
जानकर हाल अपनी रिपोर्ट का,
फिर वो मन ही मन पछताता है।।
यूं तब बढ़ जाता है और भी ग़म।
जब हो जाते जीवन के दिन कम।।
बस यही प्रायश्चित करते करते,
हरदम उसकी रहती हैं आंखें नम।।
ये स्वपोषण अपनी ओर मोड़ लो।
अधिक तले भुने से नाता तोड़ लो।।
बस यही इल्तिज़ा है दिलकश की,
अनमोल जीवन से नाता जोड़ लो।।
..✍️दिनेशपाल सिंह ‘दिलकश’
चन्दौसी जनपद संभल
उत्तर प्रदेश




