साहित्य

मानवता की जीत से ही दानवता की हार हो जाती है

एस के कपूर"श्री हंस"

1
मानवता की जीत दानवता की हार हो जाए।
प्रेम से दूर सब की हर तकरार हो जाए।।
मोहब्बत तो हर जंग पर ही होती भारी है।
यह दुनिया बस इतनी सी समझदार हो जाए।।
2
संवेदना हर किसी का ही सरोकार हो जाए।
हर कोई प्रेम का ही खरीददार हो जाए।।
नफ़रतों की मिट जाए हर एक गर्द- गुबार।
धरती पर ही स्वर्ग जैसा यह संसार हो जाए।।
3
काम हर किसीका केवल परोपकार हो जाए।
हर किसी की मदद को आदमी तैयार हो जाए।।
जुड़ जाए हर दिल से हर दिल का ही तार।
तूफान खुद ही हर नाव की पतवार हो जाए।।
4
अहम हर एक जिंदगी में बस बेजार हो जाए।
धार हर गुस्से की भी बस बेकार हो जाए।।
खुशी-खुशी बाँटे आदमी हर एक सुख-दुःख को।
गले से गले लगने को आदमी बेकरार हो जाए।।
5
हर किसी के जीवन से दूर हर विवाद हो जाए।
बात घृणा की जीवन में कोई अपवाद हो जाए।।
राष्ट्र की स्वाधीनता हो प्रथम ध्येय हमारा।
देश हमारा यों ही खुशहाल आबाद हो जाए।।
6
वतन की आन ही हमारा किरदार हो जाए।
दुश्मन के लिए जैसे हर बाजू ललकार हो जाए।।
राष्ट्र की गरिमा और सुरक्षा हो जाए सर्वोपरि।
बस इस भावना का सबमें ही संचार हो जाए।।

रचयिता।।एस के कपूर”श्री हंस”
बरेली।।

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