साहित्य

मौन नहीं अब रहना है

प्रीतम कुमार झा

जीवन में लाख थपेड़े हों
बाधा-विघ्नों के घेरे हों
मिल संग-साथ हीं बहना है
पर मौन नहीं अब रहना है।

क्यों देते सबको दोष हैं हम
क्यों मदमस्त बेहोश हैं हम
क्यों आंख पे पट्टी बंधी हुई
क्यों सबके लेते रोष हैं हम।

अब चलना केवल चलना है
खुद के सांचे में ढ़लना है
कर्मों से भाग्य बदल देंगे
पर मौन नहीं अब रहना है।

ये शुरूआत है झांकी है
अभी धर्मयुद्ध तो बाकी है
ना जाने किसका क्या होगा
कोई पैमाना कोई साकी है।

झूठी आशा को तज देंगे
हम जीत से खुद को सज देंगे
अब सच्चाई हीं गहना है
पर मौन नहीं अब रहना है।

मुश्किल तो आते रहते हैं
हम फिर भी गाते रहते हैं
हमसे है चुनौती घबराती
जय गान रचाते रहते हैं।

बस सच हीं हमारा ढा़ल रहे
भारत का ऊंचा भाल रहे
हंसकर दर्दों को सहना है
पर मौन नहीं अब रहना है।

भारत का हमको मान रहे
सबसे बढ़कर ये शान रहे
हम गीत देश के गायेंगे
जब तक इस तन में जान रहे ।

सबसे पहले है देश मेरा
सबसे अद्भुत ये विशेष मेरा
सारी दुनियां को कहना है
पर मौन नहीं अब रहना है।

प्रीतम कुमार झा
कवि, गीतकार सह शिक्षक
महुआ वैशाली बिहार.

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