
शीत ऋतु में,ये धूप सुबह की,
मध्यम से आंगन मेरे उतराई ;
जैसे धीमी आंच पर चढ़ी कढ़ाई
गुनगुनी धूप पा कर , राहत मैने पाई ।।
सर्द से सिकुड़ रहे थे,घर के पौधे सारे
धूप देख उन्होंने भी देखो ली अंगड़ाई ।।
जाड़े की जो बात कही ,तब याद आई
अम्मा ऊपर बैठ,धूप सेकती छोड़ रजाई ।।
सीढ़ियों पर लगा हुआ, मनी प्लांट बेचारा,
वह भी मांगे शीत ऋतु में,धूप का किनारा।।
चढ़ बैठी जो छत पर, ठंड से पीछा छुड़ाए
अब न भाए कुछ ,बस चाय तनिक मिल जाए।।
हरी सब्जियां भर भर आती ,सर्दियां हमें भाती
काट ,छांट कर दिन बीते ,सांझ सरस गीत गाती ।।
शीत ऋतु का हुआ आगमन , बीती अभी दिवाली
घर घर गुड मेवे का पाग बने,सर्दियां हो सेहत वाली ।।
@आशी प्रतिभा
(स्वतंत्र लेखिका)



