सगुण भक्ति की कृष्णमार्गी शाखा के कवि विषयक ऑनलाइन संगोष्ठी सम्पन्न

वागीश्वरी काव्य निर्झरिणी, प्रयागराज, उ०प्र० के तत्वावधान में 15 नवम्बर 2025 को निर्धारित समय 8:15 से ग्यारहवीं राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी का आयोजन किया गया।

जो रात्रि 10:30 बजे तक चला। इस गोष्ठी का विषय था – हिंदी साहित्य का इतिहास ( सगुण भक्ति धारा की कृष्णमार्गी शाखा के कवि )। कार्यक्रम का संचालन इस साहित्यिक मंच के संस्थापक तथा अध्यक्ष डाॅ. अर्जुन गुप्ता गुंजन द्वारा किया गया। आपने विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भक्ति काल को हिंदी साहित्य के इतिहास का स्वर्णिम काल कहा जाता है। उन्होंने बताया कि सगुण भक्ति काव्य धारा के कृष्णमार्गी शाखा के कवियों तथा उनकी रचनाओं पर आज चर्चा-परिचर्चा की जाएगी। कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना आदरणीया रेनू शर्मा ने किया। उन्होंने अपने मधुर स्वर में माँ वीणापाणि का वंदन करके सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया। तत्पश्चात इस साहित्यिक मंच की वरिष्ठ संरक्षक आदरणीया विनिता निर्झर ने इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं, संचालक मंडल तथा अतिथिगण का स्वागत अभिनन्दन किया।

इसके बाद प्रथम वक्ता के रूप में आदरणीया डॉ. मीरा सोनी ने सगुण भक्ति धारा के कृष्णभक्त कवियों का परिचय कराते हुए उनके ग्रंथो की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट किया। उन्होंने सूरदास, मीराबाई तथा रसखान द्वारा रचित ग्रंथों पर विस्तार से अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने यह भी बताया कि इन कवियों ने अपनी रचनाओं में भगवान और भक्त के बिच अनूठे संबंध तथा प्रेम की महत्ता के बारे में काव्य सर्जन किया हैं। श्रीकृष्ण ने एक पुत्र, एक सखा, एक प्रियतम, एक उपदेशक, एक शासक के रूप में विभिन्न लीलाओं को प्रस्तुत किये थे, जिसका वर्णन कृष्ण मार्गी शाखा के कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है। द्वितीय वक्ता आदरणीया प्रिया गुप्ता ने सगुण भक्तिधारा के महत्वपूर्ण कवियों सूरदास, नंददास, कृष्णदास, कुम्भनदास तथा गोविन्दस्वामी के बारे में बताया तथा उनकी प्रमुख रचनाओं की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होने बताया कि कृष्णमार्गी शाखा के कवियों ने अपनी रचनाओं में श्रीकृष्ण को भक्ति का आधार बनाकर समाज में ईश्वर से हर संबंध के निभाया जा सकता है, के सिद्धांत को प्रतिपादित किया। इसके बाद समीक्षक की भूमिका निभाते हुए इस मंच के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अर्जुन गुप्ता गुंजन ने कृष्णभक्ति शाखा के कवियों तथा उनके प्रमुख ग्रंथों पर प्रकाश डाला। आपने दोनो वक्ताओं के वक्तव्य पर विश्लेषणात्मक समीक्षा प्रस्तुत किया। आपने अष्टछाप के कवियों की विशिष्टता के बारे में बताया तथा भ्रमर-गीत पर विस्तार से अपना व्याख्यान प्रस्तुत करके गोष्ठी में उपस्थित सभी का ज्ञानवर्धन किया। भ्रमर-गीत के अंतर्गत गोपियों तथा उद्धव के बिच संवाद को आपने रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। आपने महान कृष्णभक्त रसखान के विभिन्न सवैयों पर चर्चा किया। ज्ञान के ऊपर प्रेम की वरीयता तथा इसकी महत्ता को प्रतिपादित करते हुए रसखान ने अपने सवैया के माध्यम से बताया है कि जिस परमब्रह्म परमेश्वर (श्रीकृष्ण) को शेषनाग, गणेश, महेश, दिनेश, इन्द्र, नारद इत्यादि देवता निरंतर जाप करते हैं, वंदन करते हैं, फिर भी उन्हें समझ नहीं पाते हैं, उस परमब्रह्म को प्रेम के वशीभूत होकर ग्वाल-बलाएँ, गोपियाँ छछिया (छाछ रखने का मिट्टी का पात्र) भरी छाछ पर नाच नचाती हैं। इस प्रकार परमेश्वर श्रीकृष्ण को प्रेम से प्राप्त किया जा सकता हैं, के बारे में समीक्षक डॉ गुप्ता ने बताया।
इसके बाद दर्शक दीर्घा में उपस्थित गणमान्य साहित्य साधकों में से आदरणीय पं. श्री अवधेश प्रसाद मिश्र मधुप ने श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं के बारे में बताया तथा अपने तत्कालीन ब्रजधाम भ्रमण के संस्मरण से, अपनी भक्तिभावमय अनुभूतियों से सभा को अवगत कराया। भाव विह्वल होकर कुछ कृष्णभक्ति के पद को भी आपने गायन करके प्रस्तुत किया, जो बहुत मार्मिक तथा भक्तिरस से परिपूर्ण था। तत्पश्चात आदरणीया साधना मिश्रा निशांत ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा का पाठ उन्होंने व्यासपीठ से निरंतर नौ दिन तक किया है। श्रीकृष्ण पर आधारित काव्य रचना उनके काव्य सर्जन का केंद्र विन्दु होता हैं। भगवान कृष्ण की विभिन्न लीलाओं के बारे में भी आपने बताया। इसके बाद आदरणीया कुमकुम शुक्ला ने भी कृष्ण भक्ति के महत्व से सभी को अवगत कराया। दर्शक दीर्घा में से आदरणीय आदरणीय धनञ्जय कुमार महतो ने भी आज के कार्यक्रम की सराहना की और इस ज्ञानवर्धक कार्यक्रम के लिए पटल के प्रति अपना आभार प्रकट किया। इसके बाद आदरणीया सुधा त्रिपाठी ने भी श्रीकृष्ण भक्ति के महत्व को पौराणिक परिप्रेक्ष्य में विस्तार से बताया और पटल के सभी वक्ताओं का उत्साहवर्धन किया। इनके अतिरिक्त अन्य श्रोता आदरणीया विभा रंजन सिंह, आ. शशि गुप्ता, आ. नीशा कुमारी, आ. शिवानी बोधिनी, आ. कुमकुम शुक्ला जी, आ. प्रवीण कुमार, आ. रीना गुप्ता, आ. रेनू मिश्रा भी कार्यक्रम में उपस्थित हुए। संचालक डॉ. अर्जुन गुप्ता गुंजन ने बताया कि इस शाखा के कवियों ने कृष्णभक्ति को नैतिकता और जीवन मूल्यों के साथ जोड़ने का कार्य किया।
अंत में इस मंच के व्यवस्थापक आदरणीय दुर्गादत्त मिश्र बाबा ने आभार ज्ञापन करते हुए सभी वक्ताओं तथा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। आपने सरस्वती वंदना करने के लिए आ रेनू शर्मा , स्वागत उद्बोधन के लिए आ विनीता निर्झर तथा सञ्चालन करने के लिए डॉ. अर्जुन गुप्ता गुंजन का भी आभार व्यक्त किया। इस राष्ट्रीय गोष्ठी से यह स्पष्ट हुआ कि हिंदी साहित्य की सगुण भक्तिधारा के कृष्णमार्गी कवियों ने समाज को आदर्श, नैतिकता और जीवन मूल्यों का पाठ पढ़ाया तथा ईश्वर को पिता, पुत्र, सखा, प्रियतम और भी जो संबंध चाहे ईश्वर से रखा जा सकता है, के बारे में बताया। इस काल-खंड का साहित्य जनसामान्य को एकता, मानवता और सदाचार की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता हैं। अंत में संचालक डॉ. अर्जुन गुप्ता गुंजन ने गोष्ठी के समापन की घोषणा की।
-डॉ अर्जुन गुप्ता गुंजन, संस्थापक अध्यक्ष
वागीश्वरी काव्य निर्झरिणी, प्रयागराज, उ०प्र०




