
मुखड़ा
होता है बहुत कमाल मौसम सर्दी का।
सब ओढ़ के बैठे शाल मौसम सर्दी का।।
गुलाबी धूप में छुपा कोमल एहसास।
ठंडी हवा रुकी दे जाती मधुर सुवास।
कप में उबलती चाय मन को गरमाती है।
रह- रह के याद कोई दिल मुस्काती है।
होता है बहुत कमाल मौसम सर्दी का।
सब ओढ़ के बैठे शाल मौसम सर्दी का।।
रातें लंबी हो चलीं,तारे शांत खड़े।
कोहरे की चादर बिछी, सपनें में जड़े।
राह में गिरती ओस मोती जैसे पड़े।
सर्दी का आलम हर क्षण आ मिलता अड़े।
होता है बहुत कमाल मौसम सर्दी का।
सब ओढ़ के बैठे शाल मौसम सर्दी का।।
अंगड़ाई लेकर हवा गाथा कह गई।
पत्तों की सिलवटों में धुन नई बह गई।
लोगों की भीड़ में कहीं गर्मी रह गई।
यादों की आग में जमीं पल को पिघल गई।
होता है बहुत कमाल मौसम सर्दी का।
सब ओढ़ के बैठे शाल मौसम सर्दी का।।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




