साहित्य

हमारा पहला स्कूल

कविता ए झा

वो था हमारा पहला स्कूल,
माँ के बाहों में रहती थी झूल।

पली मातृ आँचल के गाँव में,
चली पैरों पर, पापा के छाँव में।

देखा था सबने मेरा ड्रामा,
यूनीफॉर्म पहन फेंकी पजामा।

तैयार हुई जैसे कोई सेना,
बस्ते संग तान के सीना।

गई मैं पहली बार स्कूल,
कुछ पल माँ को गई थी भूल,

जब लेने आए पापा स्कूल,
दोस्तों में दिखी मैं मशगूल।

खूब हुई थी उस दिन खुश,
दूसरे ही दिन हो गई मैं फुस्स।

उदास मन चेहरा रुआँसा,
आँखों में आँसू बेतहासा।

बैग को, रखी दूर हटा,
यूनीफॉर्म में अब चुभता कांटा।

ये था हमारा पहला स्कूल,
जिसे चाहकर न पाएँ भूल।

माँ-पिता के कारण हुई शिक्षित
कर रही अगली पीढ़ी दीक्षित।

कविता ए झा
नवी मुम्बई

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