
बढ़ रही ठंडी लहर
अब प्रहर, दोपहर
तुम्हारे लिए
हुआ ठंड का आगमन,
महक उठा आँगन
तुम्हारे लिए
प्रकृति सजाई धरा- गगन
लुभावने हुए मन
तुम्हारे लिए
लय पायल छन- छनन
पुष्पित हरित उपवन
तुम्हारे लिए
शुभ्र चाँदनी, बिछी आँगन
बढ़ने लगी है आकर्षण
तुम्हारे लिए
चमकती चाँदनी से सिंचित
हुई मेरी चितवन
तुम्हारे लिए
मेरे हाथों चूड़ी, कंगन
खनकता छन -छनन
तुम्हारे लिए
रहूँगी प्रियतम तुझमें मगन
लूँगी फिर जनम
तुम्हारे लिए
शीत ऋतु,देंगे अब
हमें जीवन नव
तुम्हारे लिए
कविता ए झा
नवी मुम्बई




