
मौन
मौन रहना आसान नहीं,
शब्द दिल में शोर मचाते हैं।
जवाबों से भरा होता मन,
पर होंठ ख़ामोशी ओढ़े रहते हैं।
ये मौन कोई कमजोरी नहीं,
ये मन का अपना अनुशासन होता है।
जब बोलने से बात बिगड़ती हो,
तब चुप रहना ही समाधान होता है।
मन संयम की डोर थामे,
हर शब्द को तौलता रहता है।
मौन वही रख पाता है,
जिसका दिल खुद पर नियंत्रण रखता है।
मौन रहना सरल कहाँ,
मन तो उत्तरों से भरा रहता
हर बात कह देना चाहते है
पर स्वर कहीं अटक-सा रहता है।
मौन कोई ख़ालीपन नहीं,
ये मन का अपना नियंत्रण है।
जो कहकर पछताना पड़े,
उससे बेहतर चुप रहना ही बेहतर है ll
पूनम त्रिपाठी
गोरखपुर




