साहित्य

महुआ का फल

शशि कांत श्रीवास्तव

ग्रीष्म ऋतु की हुई ये दस्तक
सुबह सवेरे….,
धीरे धीरे,
बिखर रही है,
मीठी मीठी- मादक सी,
एक सुगन्ध ,
चहुं ओर…,
ऊपर देखा,
महुआ के वृक्षों पर,
महुआ…|
लदे हुए हैं गुच्छे में ,
फल और फूल ,
महुआ के…|
महुआ के नीचे झरे हुए हैं ,
रस से भरे महुआ के फल ,
आओ चलें,
तुम भी बीन लो
लोग बीन रहे हैं
महुआ का फल ,
टप… टप …,
टपक रहा है,
महुआ का फल ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब

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