
सौदागर बन बैठा है हर इंसान,
फायदा किस में लेता है पहचान।
भावनाओं की कोई कद्र नहीं है,
जुड़ते वहीं जहां फायदा सही है।
इंसानियत मायने नहीं रखती है,
सच्ची बात सभी को चुभती है।
करता हर चीज में मोल भाव,
अपनेपन की मिलती नहीं छांव।
सच्चे रिश्तो की कदर नहीं है,
भाई भी भाई का सगा नहीं है।
प्यार की सब बातें करते हैं,
पर धोखा देने से नहीं डरते हैं।
सौदागर बनो तुम खुशियों के,
तुम्हारे साथ से जीवन महके।
सब में बांटो खुशियां अपार,
तुमसे महके सब का संसार।
सौ, भावना मोहन विधानी
अमरावती महाराष्ट्र।




