आलेख

डॉ रामशंकर चंचल की मसीहा आंचलिक उपन्यास , अनसुने उपेक्षित जीवन की आवाज़ है सागर जख्मी , प्रकाशक

आदिवासी अंचल की मिट्टी से उठी यह कथा केवल एक उपन्यास नहीं—यह उस जीवन का दस्तावेज़ है, जो हमारी मुख्यधारा से अक्सर अनदेखा रह जाता है। डॉ. रामशंकर ‘चंचल’ की लेखनी ने इस उपन्यास “मसीहा” में जिस संवेदना, संघर्ष और मानवता का चित्रण किया है, वह न केवल पाठकों को भीतर तक झकझोरता है, बल्कि यह भी बताता है कि साहित्य तब ही सार्थक होता है जब वह अपने समय, समाज और आम आदमी की धड़कनों को स्पर्श कर सके। झाबुआ की धरती से निकला एक लेखक जब देशभर के पाठकों के हृदय में जगह बना लेता है, तब वह केवल साहित्य की उपलब्धि नहीं होती—वह उस माटी, उस समुदाय और उस लोकजीवन की जीत होती है जिसे अक्सर हाशिये पर रखा गया। “मसीहा” ऐसे ही अनसुने-उपेक्षित जीवन की आवाज़ है, जो हर अध्याय में मानवीय करुणा और सामाजिक यथार्थ को एक नई दृष्टि देता है।
सोमला, रतनी, काली और रामलसिंग जैसे पात्र हमें स्मरण कराते हैं कि साहित्य का सच्चा विस्तार वहीं होता है, जहाँ शब्द मनुष्य के दुख-सुख के साथ कदमताल करते हैं। इस उपन्यास में डॉ. चंचल ने बड़े कौशल से यह दिखाया है कि जीवन की सबसे सरल परिस्थितियाँ भी कितनी गहरी और मार्मिक हो सकती हैं। उनकी भाषा लोकजीवन की सहजता लिए हुए है—सरल, स्वाभाविक और सजीव—लेकिन उसके भीतर विचारों की जो गहराई छिपी है, वह इस कृति को अत्यंत विशिष्ट बनाती है।
इंक़लाब पब्लिकेशन के लिए यह गर्व और भावनात्मक संतोष का विषय है कि हम ऐसी कृति पाठकों तक पहुँचा रहे हैं, जो न केवल पठनीय है बल्कि समाज के मानस को भीतर तक अलोकित करती है। हमें विश्वास है कि “मसीहा” पाठकों को शाब्दिक आनंद ही नहीं—बल्कि जीवन, समाज और मानवीय मूल्यों के प्रति एक नई दृष्टि भी प्रदान करेगी।
डॉ. रामशंकर ‘चंचल’ की यह सशक्त रचना हिंदी साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण जोड़ की तरह है। हम उनकी लेखनी के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए आशा करते हैं कि यह कृति अपने उद्देश्य, संवेदना और संदेश के कारण आने वाले समय में भी पाठकों के हृदय में अपना स्थान बनाए रखेगी।
*—प्रकाशक*
*इंक़लाब पब्लिकेशन*

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