कहानी संग्रह ‘रंग को तरसती तूलिका’ का विमोचन संपन्न

वैचारिकी, साहित्यांजलि प्रज्योदि एवं लोकरंजन प्रकाशन के संयुक्त तत्त्वावधान में रवि कुमार मिश्र के कहानी संग्रह ‘रंग को तरसती तूलिका ‘ का लोकापर्ण समारीह ‘सारस्वत सभागार’ लूकरगंज मे संपन्न। कार्यक्रम की अध्यक्षता मारूफ शाइर अनवार अब्बास एवं मुख्य अतिथि रवि नन्दन, विशिष्ट अतिथि विजय लक्ष्मी विभा, शम्भू नाथ त्रिपाठी अंशुल, लोकेश मिश्र रहे। संचालन संगीता श्रीवास्तव सुमन ने किया। स्वागत एवं आभार प्रो०अरविन्द कुमार मिश्र ने किया। संयोजक डॉ० प्रदीप चित्रांशी एवं डॉ० आदित्य नारायण सिंह रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अनवार अब्बास नकवी ने कहा कि हम उस पीढ़ी के आखिरी लोग हैं जिन्हें कागज की महक और किताबी तकिए की लत है । साहित्य जो है वह सौंदर्य है जीवन का, मन का, चेतना का,सृजन का । भाव और भावनाओं के सूनापन पर आधारित कृति रंग को तरसती तूलिका का मुख्य विषय है प्रेम,प्रेम वह दृष्टि और भाव है जो इस दृष्टि से जिस चीज को देख लेता है वह सुंदर हो जाती है। अगर आप सृष्टि से प्रेम नहीं कर सकते तो आपका परमात्मा से प्रेम नहीं हो सकता। साथ ही साथ उन्होंने कहा कि हर साहित्यकार समाजशास्त्री होता ही है। पाठक और पुस्तक पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि घर में किताबें तभी पहुंचेंगी जब बाजार में किताबें आएंगी। साथ ही उन्होंने पढ़ने की संस्कृति पर कहा कि आज किताबों का बाजार ही गायब होता जा रहा है अत: यह देखना होगा कि लेखक पाठकों को बांधने में कितना सफल हो पाता है। मुख्य अतिथि डॉक्टर रविनंदन सिंह ने कहा कि यह रचना मनोविश्लेषणात्मक है, मन का अंतरद है, इसमें फ्रायड है, हर कहानी में बारीक परते हैं, उसमें अंदर जाने की जरूरत है, परतों को खोलने की जरूरत है, क्योंकि रचनाकार अपने व्यक्तित्व को विलीन करके लिखता है स्थायी भाव पर लिखा साहित्य, मानवीय भाव पर लिखा साहित्य कालजयी होता है और “रंग को तरसती तूलिका” के लेखक ने स्थाई भाव को पकड़ा है वह भाव है प्रेम ।साथ ही उन्होंने लोक कथा से लेकर आधुनिक कहानी तक के सफर पर श्रवण परंपरा से लेखन और आधुनिक कहानी पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि अनुभूतियों के कहानीकार है प्रोफेसर रवि मिश्रा। विजयलक्ष्मी विभा ने कहा कि समाजशास्त्र साहित्य का सृजन करता है। डॉ शंभू नाथ त्रिपाठी अंशुल ने प्रेम, प्रेम के अंतर्द्वद की चर्चा करते हुए कहा कि प्रेम में पाने का नहीं खोने का भाव होता है। प्रस्तुत कहानी का भाव समाज को अनुप्राणित करेगा। श्री लोकेश शुक्ला जी ने गणेश वंदना एवं सरस्वती वंदना करते हुए प्रस्तुत कहानी की चर्चा में भावनात्मकता के साथ दूसरों को समझना और एक संवेदना अभिव्यक्त करने हेतु हार्दिक शुभकामनाएं दी। इस अवसर पर शहर के नाम चीन शायर, साहित्यकार रचना धर्मी एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।



