
सर्दियों की दावत है
मुझे छोड़ कहां जा रहे हो
रजाई जरा चरमराई
सर्दी को सेक लेनो दो जरा सी धूप
ओस को सूख जाने दो
वैसे भी सुबह ले रही ठंडी अगड़ाई
कल तो ही किया था कुल्ला
कल ही तो धोया था चेहरा
आज भी जल को कष्ट नही
देना है
शेरों जैसा रहना है
वो रोज नही धोते मुंह
बात ध्यान को रख
बस खुमारी को नही
छोड़ना है
लग जायेगी सर्दी
हो जायेगा
खांसी जुकाम
शरीर का भी ख्याल रखना है
बस पेट पचा ले हर चीज
बस प्रभु से यही आर्शीवाद
मांग
जो खा पी के सब पचा गए
तू उनको अपना आर्दश मान
तन रहेगा तो मन रहेगा
इस सिद्धांत को तू पहचान
नियस्ती बन नींद की खुमारी बन
बस इसी में
चाय नाश्ता नाश्ते का मजा उठा।
संजय प्रधान,देहरादून।




