
एक दूसरे से सटे
अलग-अलग विचारों में बँटे
बिना किसी संकोच के
अमूर्त रूप में बतियाते रहते हैं
किताब के पन्ने l
एक ही किताब के सभी पन्ने
कभी एक ही बात कहते हैं
कभी अलग -अलग बातें कहते हैं
युगों बीत जाते हैं , पन्ने फट जाते हैं
मगर बातें ख़त्म ही नहीं होतीं
आखिर वह कौन -सी बात है
जो हमारी पकड़ में नहीं आती
और जिसे लगातार बाँचते रहते हैं
किताब के पन्ने l
हम तो समझ नहीं पाते
मगर जब गूँजने लगती है
सभ्यताओं के आवरण में
पन्नों की फुसफुसाहट
तब हम समझ पाते हैं
नए युग की संभावनाएँ
अँगड़ाइयाँ ले रही हैं
किताब के पन्नों में l
©️ भूपेश प्रताप सिंह
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश


