साहित्य

एक भी नहीं. जिसे मेरा ख्याल हो

डॉ राम शंकर चंचल

एक भी नहीं.
जिसे मेरा ख्याल हो

चला जा रहा था
अकेला दूर. बहुत दूर
सुनसान सड़क पर
सोच रहा था
कोई एक भी नहीं
जिसे पता हो
मैं कहाँ हूं. कब तक लोटना
होगा. खाना खाया यह नहीं
क्या पहन कर निकलना
आदि आदि सेंकड़ों बात
जो किसी भी एक की
चिंता मैं हो
अच्छा लगता है
सभी को. कोई है एक
जिसे मेरा ख्याल है
पर साहब हमारे बदकिस्मती की
कोई नहीं.वेसे दुनिया की
नज़र में. कुछ अपने है
पर अपने तो. वो जिन्हें
यह सब कुछ पता हो
खैर साहब. किसी से
कोई शिकायत नहीं
क्यों कि तुम हो
न होकर भी. सदा साथ
यह अहसास बहुत है
तभी तो. बेबाक जीता हूं
मस्त और प्रसन्न
बहुत बहुत कुछ कर
गुजरते
पूज्य पूज्य रूह
सत् सत्.प्रणाम
बस इसी तरह बना रहे
शायद और भी बहुत कुछ
कर जाएँ जो. भविष्य को
भी सार्थक कर
आनेवाले कल को
कुछ ही सही
दे सुखद महसूस करूं

डॉ राम शंकर चंचल
झाबुआ मध्यप्रदेश

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