
देखो बच्चों अंखियां खोल
आज का चंदा गोल-मटोल
शरद रात्रि का चंदा है यह
नील गगन का बंदा है यह,
इसमें बुढ़िया बैठी है
सूत कातती रहती है,
बुन कर देगी एक झिंगोला
ठंडा है यह बर्फ का गोला,
धरती पे अमृत बरसाता
स्वच्छ चांदनी है फैलाता,
मां जब खीर बनाएगी
सुबह को मुन्नी खाएगी,
रोग – शोक से दूर रहेगी
संँग में खाएगी वो जलेबी
पार्क में होगी आज कबड्डी
रह ना जाना कहीं फिसड्डी
चंदा मामा दूर नहीं है
मिलने से मजबूर नहीं है,
मुन्ना पढ़-लिख जाएगा
चांद से मिलने जाएगा
*आशा बिसारिया चंदौसी*



