साहित्य

आनंद

सौ, भावना मोहन विधानी

आनंद की चाह में लोग भटकते फिरते हैं यहां वहां,
पर किसी को पता है आनंद मिलता है कहां?
आनंद कोई चीज नहीं जो बाहर से खरीदी जा सके,
आनंद वो तितली है जिसे हर कोई न पा सके।

जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में आनंद को ढूंढो तुम,
कभी चाय की प्याली तो कभी बच्चों की मस्ती में हो जाओ गुम।
मत सोचो एक पल के लिए भी जमाना क्या कहेगा?
चिंता करना छोड़ दो तो आनंद दिल में अपने आप बहेगा।

जीवन से मृत्यु तक के बीच के सफर को उल्लास और आनंद से जियो,
हर पल को दिल से जी कर खुशियों के प्याले पियो।
आनंद बाहर नहीं हमेशा से ही हमारे दिल में है रहता,
यह तो खुशी का लहू बनकर हमारे अंदर ही है बहता।

आनंद तो प्रकृति और हमारे जीवन के कण-कण में है समाया,
पर इंसान ही जाने क्यों इस रहस्य को नहीं समझ पाया?
आनंद की लहरें तो दिन रात जीवन रूपी सागर में उठती हैं,
कभी हमें आनंदित करती हैं तो कभी हमारी आत्मा को छू लेती है।

सौ, भावना मोहन विधानी
अमरावती महाराष्ट्र।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!