साहित्य

गजल

डाॅ सुमन मेहरोत्रा

कभी जज़्बात की ज्वाला जला दिल को जलाते हो,
कभी क़तरा भरा रहमत सभी को मद पिलाते हो।

ग़मे-दुनिया भटकती जिंदगी को मंज़िल बताते,
बँधी ज़ंजीर से किस्मत उसे पल में गलाते हो।

उजाड़े बाग़ आँगन भी,कभी कलियाँ सजाते हो,
जहाँ बंधन पड़े भारी, वहीँ तूफ़ाँ हिलाते हो।

गुनाहों के अँधेरे में पड़े जो हों उन्हें देखा,
झुकी पलके कभी सजदा झुका कर ही भुलाते हो।

सुमन के पास आकर इस तरह हिल -मिल गये भगवन,
गुजरती साँस साँसों मेंतुम्हीं को रब बुलाते हो।

डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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