साहित्य

पुस्तक समीक्षा : वरेण्य

समीक्षक : रमेशचन्द्र द्विवेदी,कथाकार : नन्दलाल मणि त्रिपाठी

दिल पर दस्तक देती कहानियाॅं

हिंदी साहित्य के पाठकों के लिए कथाकार नन्दलाल मणि त्रिपाठी एक सुपरिचित नाम है। वे पाठकों के नब्ज़ को पहचानते हैं तदनुसार ही कथा वस्तु का चयन करते हैं। आधुनिक हिन्दी कहानी लेखन बदलाव के दौर से गुजर रहा है। लम्बी कहानियों का दौर अतीत की याद बनकर रह गया है। छोटी -छोटी कहानियाॅं पाठकों को आकर्षण में बाॅंध रहीं हैं। *वरेण्य* कहानी की समीक्षा लिखते समय मुझे इसकी अनुभूति हुई। देश-काल और परिस्थिति के आधार पर कहानियों के स्वरूप में परिवर्तन आ रहा है। कहानी कला के क्षेत्र में कथानक, संवाद, परिस्थिति एवं उद्देश्य विशेष महत्व रखता है । वक्ता -श्रोता के मंतव्य को समझना सरल कार्य नहीं है। कहानी की समीक्षा आकारगत आधार पर नहीं अपितु अन्तर्वस्तु के आधार पर होती है। उक्त के आलोक में देखा जाए तो इस संकलन में कुल सैंतीस कहानियाॅं संकलित हैं।
कृति का नाम *वरेण्य* यथा नाम तथा गुण को परिभाषित करता है । कथाकार ने इस संग्रह में अपनी चुनिंदा कहानियों को स्थान दिया है जो पाठकों के द्वारा वरण करने योग्य है। कहानी का ताना- बाना बुनते समय कथाकार ने इस बात ध्यान रखा है कि वह अपने लक्ष्य से च्युत न हो । इस संग्रह की कहानियों में -सफ़र का सच, गंगा तेरा पानी अमृत, पटेबाज, वज्रमणि, खुशामद, चिराग तले अंधेरा, बिल्ली और दूध की रखवाली, अन्तर्ध्यान, विजुगुप्सा, प्रति नायक, आ बैल मुझे मार, आभरण, सुश्रुषा, मेनाद, निज घृत, साहस का सच, वज़ीर, होली के रंग, पंचगव्य, प्रायश्चित, पत्थर, साज़िश, खुरपेची, जिद्द, किचकिच, टिकोरा, चोर-चोर मौसेरे भाई, रिश्ता -रस्म, अहंकार, ताक़त, शेरू, नियत, अमल, संघर्ष, शरीफ़ यात्री और कलाकार आदि प्रमुख हैं।
समीक्षागत कृति में सभी कहानियों की समीक्षा करने से पाठकों की प्रतिक्रिया से वंचित होने का भय बना रहता है। अस्तु मैं यहाॅं पर कुछ ही कहानियों पर दृष्टिपात करना उचित समझता हूॅं। *सफर का सच* सोशल मीडिया द्वारा परोसी जा रही अश्लीलता एवं असंवेदनशीलता पर लेखक ने सवाल उठाया है। दिव्यांश कारगिल युद्ध का नायक है। युद्ध के दौरान जीवन बचाने के उसके हाथ -पैर काटने पड़ते हैं। रंजीता उसे अपने व्यवहार से अपमानित करने का कुत्सित प्रयास करती है। कथा का पर्यावसान सुखद मिलन में होता है। *गंगा तेरा पानी अमृत* में सामाजिक समरसता का ताना-बाना बुनने का काम कथाकार ने किया है। धीरेन्द्र, सुमंत,सोहन और अवतार को गंगा में डूबने से बचाने के लिए गणतंत्र दिवस समारोह में आसिफ़ और बिस्मिल्लाह को सम्मानित किया जाता है। *पटेबाज* कहानी का नायक शिवहरे है। अभाव की पीड़ा को लेखक ने बड़ी संजीदगी के साथ उठाया है। मंदिर के पुजारी गोमेद गिरि के सहयोग से वह इलाके का मशहूर पहलवान बनता है। *वज्र मणि* कहानी में जमींदारी प्रथा का उल्लेख करते हुए। पारस नामक आदिवासी युवक के विधायक बनने की कथा को परिस्थितियों के वात्याचक्र से अप्रभावित रहते हुए मिसाल कायम करने शिक्षा देती है। *वरेण्य* कहानी में पंचायती चुनाव की छल-कपट, एवं नशाखोरी के विरुद्ध आवाज़ उठाने का काम लेखक ने बेहतरीन ढंग से किया है। इस कहानी को पढ़ने के बाद श्री लाल शुक्ल की “राग दरबारी” की याद आना स्वाभाविक है। हासिम नामक मेधावी युवक किस तरह नशे की गिरफ़्त में आता है और उससे मुक्त होकर राजनीति की शरण लेता है। *पंचगव्य* कहानी धार्मिक ढकोसले और छुआछूत पर प्रहार करती है। साड़ों की मार से घायल पंडित शीलभद्र को गाॅंव का ही कसाई रियासत मियाॅं अपना खून देकर प्राण बचाता है। मजे की बात यह है कि उनका इलाज़ करने वाला चिकित्सक डोम जाति का है। इस कहानी में लेखक ने खूब चुटकी और नसीहत देने का काम किया है। *टिकोरा* कहानी में शार्दुल सिंह रईस और काव्या के बीच फॅंसे नौकर मनसुख की मनोदशा का चित्रण लेखक ने मनोविज्ञान के आलोक में किया है। डॉक्टर विश्वेश्वर सिंह व मनीषा की प्रेम कहानी का जीवंत वर्णन है। गरीब बुधुआ का जटिल आपरेशन नि: शुल्क करके वह सच्चा हमदर्द बन जाता है। सेवा भाव का यह अप्रतिम उदाहरण है जो आज के समय में दिखाई नहीं देता। *कलाकार* कलावती की तपस्या और कुलवंत के संघर्ष की गाथा को कथाकार ने नये तेवर के साथ प्रस्तुत किया है। सपनों की नगरी मुम्बई में कलाकार बनने के लिए बहुतों के सपनों पर वज्रपात हो जाता है। कुलवंत मौके को भुनाने में सफल होकर प्रतिष्ठित कलाकार बन जाता है।
कहानी में कथा की उपयोगिता को लेकर लेखक को अपनी काबिलियत सिद्ध करनी पड़ती है। संवादों को धार देना पड़ता है। पात्रों के चयन में सतर्कता रखनी पड़ती है। उनके अन्तर्मन में उतरकर गर्भित उद्देश्य को व्याख्यायित करना पड़ता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो कथाकार नन्दलाल मणि त्रिपाठी पाठकों के हृदय का संस्पर्श करते हैं। उनकी कहानियों में बेबाकी का पुट है। समय के प्रवाह के साथ बहने की क्षमता है। मुहावरेदार शैली में प्रस्तुत संवाद कहानी को धारदार बनाते हैं। कथाकार का सूक्ष्म परीक्षण और तार्किक विश्लेषण अत्युत्तम है। आकर्षक साज-सज्जा,आवरण, त्रुटिहीन मुद्रण के लिए मैं प्रकाशक को भी साधुवाद देता है। मुझे विश्वास है कि साहित्य जगत् के सुविज्ञ पाठक इस कथा संग्रह का अनुमोदन करेंगे। कथाकार नन्दलाल मणि त्रिपाठी को इस अप्रतिम कृति के हार्दिक बधाई।

समीक्षक
रमेशचन्द्र द्विवेदी
पूर्व प्रधानाचार्य
हल्द्वानी-नैनीताल

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