साहित्य

कमरे तक सीमित, प्रतिदिन अनेककिरदार निभाते . साहित्य दुनिया में छाया .अद्भुत नाम डॉ रामशंकर चंचल

यह है एक ऐसे इंसान. जो सालों से प्रतिदिन घर आंगन की झाड़ू लगता. घर.परिवार के अनेक किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाते हुए. साहित्य की दुनिया में विश्व पटल पर छापा हुआ. एक सहज और सालों से साधना करता हुआ. आज सम्पूर्ण विश्व पटल पर दस्तक दे अपने आदिवासी पिछड़े अंचल के साथ
देश का गौरव. डॉ राम शंकर चंचल
झाबुआ मध्यप्रदेश की पहचान जिसे
भौतिक सुख और सुविधाओं से कोई लेना-देना नहीं बस प्रतिदिन जब ईश्वर समय दे. घर और परिवार के किरदार से. साहित्य सेवा करते हुए जीवन व्यतीत कर. उसके दिए कर्म को निभाना. न कोई सम्मान की दौड़ कोई नाम. प्रसिद्ध की भूख
कर्म ही ईश्वर है इसके सिवा कुछ नहीं जानता
इस एक कमरे तक समिति जिंदगी. यहीं वह सरस्वती का आंगन. जहां जीते हुए. बेहिसाब कृतियों का सृजन करते देश. दुनिया को भेंट किया. आज उन्हें भी नहीं पता उनकी लिखी कितनी कृतियां हैं क्या नाम है बस लिखा छपा भूल गए और आगे की सोच चिंतन में व्यस्त
पूरे दिन में कभी कोई मिल गया दिल के करीब का पांच मिनट बात की .प्रतिदिन अपने बड़े भाई. भाभी के घर आंगन में कुछ समय निकाल कर फिर अपने कमरे में बंद. निकले तो बस धूम फिर अकेले किसी सुनसान स्थान पर दस्तक दे .प्रकृति के दर्शन कर वापस अपने कमरे में बंद
यह है सालों की साधना और तपस्या
यहीं जीवन जीते हुए जीवन पूरा करने की चाह जब तक ईश्वर ने लिखा है जीना है और जीना है तो फिर कुछ करते हुए व्यर्थ समय गंवाना कभी रास नहीं आया
केवल आपके कर्म ही आपको जो देना है देगा बाकी कोई भी व्यक्ति. भगवान नहीं देता है . ईश्वर भी उन्हीं के साथ होता है जो कर्म कर रहे हैं यह सोच के समर्थक. डॉ राम शंकर चंचल है और इसी सोच का प्रभाव है कि आज सम्पूर्ण विश्व धरोहर बने हुए साहित्य के क्षेत्र में चर्चित हो अपनी जन्मभूमि को सार्थक देख गर्व महसूस करते हैं

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