साहित्य

अकेला

नीलम अग्रवाल "रत्न"

कमाले भले लाख संपत्ति पैसा, नहीं साथ जाता वहाँ एक धेला ।
लगा लो भले मोह रिश्तों से प्राणी, जहाँ से सभी जीव जाता अकेला ।।
सभी छोड़ देंगे तुझे देख लेना, उड़े प्राण तेरे लगे तू झमेला ।
भड़ा आज संसार में देख धोखा, यहाँ आदमी आदमी को ढकेला ।।

खुशी से जियो आदमी छोड़ चिंता, यहाँ जो हुआ है रचे ईश खेला ।
जपो राम को तो कटे कष्ट पीड़ा, लगे जिंदगी ये तुझे एक मेला ।।
सुनो धर्म के काम खाली न जाए, यही साथ जाता सदा अन्त बेला ।
करेगा यहाँ कर्म जो तू अनोखे, मिले पुण्य जो भी उठाना अकेला ।।

करे पाप को नष्ट तो यज्ञ पूजा, करो दान थोड़ा पढ़ो ग्रंथ गीता ।
करेगा यहाँ काम जो तू भलाई, तभी पूर्ण तेरा सही वक्त बीता ।।
तजे स्वार्थ प्राणी यहाँ जो स्व इच्छा, वही जिंदगी में खुशी देख जीता ।
वहां से तू आया कभी बाँध मुट्ठी, अकेला चला तू वहीं हाथ रीता ।।

नीलम अग्रवाल “रत्न” बैंगलोर
🙏🙏

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