साहित्य

कुछ फायकू

वीणा गुप्त

1

रंग बिखेरे आशा भरे,
इस जीवन में ।
तुम्हारे लिए।

2
आँसू पोंछे और मुस्काया,
दर्द छिपाया मैंने।
तुम्हारे लिए।

3

जीवन तो गति है,
सतत संघर्ष यह।
तुम्हारे लिए।

4
संबंध निभें भावना से,
मत कर दिखावा।
तुम्हारे लिए।

5
स्वार्थ हुए अनुबंध सारे,
नीम हुआ शहद।
तुम्हारे लिए।

6
काँटे मत बो कभी,
काटने भी पड़ेंगे।
तुम्हारे लिए।

7
चुप्पी बोलती नहीं है,
मन दाह भरा
तुम्हारे लिए।

8
अब रुकेगा नहीं कारवां,
मंज़िल तक जाएगा।
तुम्हारे लिए।

9
मोह मुक्ति सुख है,
समझो बात यह।
तुम्हारे लिए।

10
कली चटकी उपवन हंँसा,
सुरभि संदेश लाई।
तुम्हारे लिए।

11

अपनी भाषा अपने सुर,
मैं बदलूँ क्यों?
तुम्हारे लिए।

13
भटका देंगे लोग तुझे,
मत पूछ रास्ता।
तुम्हारे लिए।

14
हाथ पकड़ बात नहीं,
बने रहें संबंध ।
तुम्हारे लिए।

15
धूप प्रेरक संघर्ष की ,
छाया रोके कदम।
तुम्हारे लिए।

16
मौका मिलता नहीं है,
छीन ले उसे।
तुम्हारे लिए।

17
रास्ते से मत भटक,
जीवन हो सार्थक।
तुम्हारे लिए।

18

बदलें हालात तभी तो,
बदलें सोच अपनी।
तुम्हारे लिए।

19
भावना के बिना बुद्धि,
मरू की तपन।
तुम्हारे लिए।

20
सहज उच्छलन भाव का,
बना कविता निर्झरी।
तुम्हारे लिए।

21

ज़रुरत,जिम्मेदारी ,ख्वाहिशें कुछ,
है यही ज़िंदगी,
तुम्हारे लिए।

22
ईमानदारी चीज है महंगी,
सब नहीं रखते।
तुम्हारे लिए।

23

मौन की आवाज़ सुन,
मुखर है बहुत।
तुम्हारे लिए।

24
धर्म बेबस हुआ आज,
राजनीति शिकंजे में।
तुम्हारे लिए।

25
उगता डूबता सूरज देख,
सुंदर बहुत यह।
तुम्हारे लिए।

26
मैं चुप तू चुप,
यही है सुख।
तुम्हारे लिए।

27
शरण गह ईश की,
मिटे दुविधा सभी।
तुम्हारे लिए।

28
वाणी मधुर पीड़ा हरे,
मन शांति भरे।
तुम्हारे लिए।

29

भूख से लड़े जो,
वही होता सुंदर।
तुम्हारे लिए।

30
मत करो समझौता कभी,
अन्याय से तुम।
तुम्हारे लिए।

31

आईना देख गौर से,
तभी जग सुधरेगा।
तुम्हारे लिए।

32
आज ठूंठ है गुलाब,
कल खिलेगी कली।
तुम्हारे लिए।

33
झूठे हैं शब्द सारे,
पढ़ ले नयन ।
तुम्हारे लिए।

34
परखते हैं सभी यहाँ,
समझता कोई नहीं।
तुम्हारे लिए।

35

कर्म ही मुक्ति है,
उठ काम कर।
तुम्हारे लिए।

36
परिवर्तन है जीवन क्रम,
साथ इसके चल।
तुम्हारे लिए।

37
हर गांठ खुल जाएगी,
सुलझा धीर धर।
तुम्हारे लिए।

38

उड़ान को उड़ने दे,
मंज़िल पाएगी यह।
तुम्हारे लिए।

39

अतीत तो बीत गया,
आज में जियो।
तुम्हारे लिए।

40
आँसू देते हैं बता,
हर खुशी-गम।
तुम्हारे लिए।

41

मथुरा गए कान्हा जब,
सूना हुआ वृंदावन।
तुम्हारे लिए।

42
सच लगा दाँव पर,
आया कैसा जमाना?
तुम्हारे लिए।

43
सब सहा चुप रहा,
अब और नहीं।
तुम्हारे लिए।

44

फूल महके विहग चहके,
उजाड़ मत उपवन।
तुम्हारे लिए।

45
मन हुआ तब मग्न,
लागी हरि लगन।
तुम्हारे लिए।

वीणा गुप्त
नई दिल्ली

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