
है खड़ा प्रहरी हिमालय,
उत्तरी प्राचीर तन के।
पाँव धोता नित्य सागर,
दक्षिणी तकदीर बन के॥
वक्ष में नित लोटती हैं,
भव्य नदियाँ पग पसारे।
शस्य-श्यामल उर्वरा है,
मेदिनी के हम दुलारे॥
हर तरफ से हम सुरक्षित,
ईश का वरदान हम हैं।
हम पुजारी शाँति के हैं,
प्रेम का सोपान हम हैं॥
शून्य का ये ज्ञान हमने,
ही दिया था विश्व भर को।
ज्ञान का आलोक हमने,
ही दिया था शिष्यवर को॥
कर्म पथ से जब धनुर्धर,
पार्थ विचलित हो लिए थे।
कृष्ण गीता को सुनाकर,
मार्गदर्शन तब दिए थे॥
धर्म के रक्षार्थ प्रभुवर,
हैं सदा अवतार लेते।
हम सभी दुख की घड़ी में,
नाव अपनी नित्य खेते॥
© डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश



