साहित्य

वाणी तो सम्प्रति मूल्यवान गहना है

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’

वाणी तो सम्प्रति मूल्यवान गहना है

कुछ मंज़िलें अकेले ही पार की जाती हैं,
कुछ लड़ाइयाँ अकेले लड़नी पड़ती हैं,
दुनिया में आते भी अकेले ही हैं हम,
दुनिया से अकेले ही जाते भी हैं हम।

वक्त कहाँ इंगित करता है कब
किसे अकेला चलना पड़ जाये,
भावनात्मकता में कभी किसी
से व्यर्थ में प्रीति नहीं लगायें।

ख़ुश रहने से भी प्रतिदिन साहस
कहाँ किसी को भी मिल पाता है,
विपरीत समय, कठिन परिस्थिति
की चुनौती झेल साहस मिल पाता है।

प्रेम व आँसू के स्वरूप भले अलग हों
किन्तु दोनों के श्रोत सच्चे हृदय होते हैं,
प्रेम में अगर ख़ुशी मिलती है तो आँसू
सुख दुःख दोनो ही स्थिति में बहते हैं।

कपड़े से छना हुआ पानी शरीर ठीक
रखता है और विवेक से छनी वाणी
आपस के सभी संबंध ठीक रखती है,
प्रेम की मीठी बोली हमें एक रखती है।

जिह्वा से निकले शब्दों का और
सच्चे मन से पनपी खुद की सीधी
सोच का आचरण अनूठा होता है,
यह समझना, समझाना कठिन होता है।

वाणी तो सम्प्रति मूल्यवान गहना है
कठोर वाणी नहीं किसी ने सहना है,
वाणी की मिठास प्रेम का सागर है,
वाणी की भूल आदित्य घना जंगल है।

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ

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