जरकिन स्वेटर या चादर ओढे
फिर भी सर्दी हमको ना छोड़े
सर सर सर अगर यह हवा चले
तो ऊनी कपड़े भी पड़ जाते हैं थोड़े
बदन ठिठुरता और दांत भी बोले
जब सहते हैं हम हवा के कोड़े
कर देती है यह देर सभी को
रेलों की राह में भी अटकाती रोड़े
चूल्हे अंगूठी और यह हीटर
फेल हो जाते हैं सबअकल के घोड़े
काम करना हुआ है मुश्किल
हाथ हम में ऐसी ठंड को जोड़े
पं पुष्पराज धीमान भुलक्कड़
गांव नसीरपुर कला हरिद्वार



