
संस्मरण
चित्रकूट वह भूमि जहाँ तप, सेवा और साधना की ज्योति युगों से प्रज्वलित है। इस पावन नगरी की ओर बढ़ते हुए मन सदैव एक अनिर्वचनीय शांति से भर उठता है, किंतु इस बार का प्रवास केवल एक यात्रा नहीं था यह ज्ञान, सहयोग और साहित्यिक सान्निध्य का अद्भुत संगम बन गया। जगद्गुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट का प्रांगण जैसे ही दृष्टि के समक्ष आया, मन में एक गहरी गरिमा और आदर का भाव जाग उठा।

दिव्यांगजनोन्मुख शिक्षा को समर्पित यह विश्वविद्यालय केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना, समावेशन और ज्ञान की जीवंत परंपरा है। दिव्य गंगा सेवा मिशन और विश्वविद्यालय के मध्य हुआ एमओयू हस्ताक्षर इस प्रवास का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था। यह हस्ताक्षर केवल एक दस्तावेज़ की औपचारिकता नहीं, बल्कि सेवा, शिक्षा और शोध के नए आयामों की उद्घोषणा थी। आदरणीय कुलपति महोदय प्रो. शिशिर कुमार पाण्डेय जी का सानिध्य और आशीर्वाद मिशन के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा।साथ ही इस गरिमामयी अवसर पर कुल सचिव आ. मधुरेन्द्र पर्वत जी, इंचार्ज डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश एवं ओएसडी, कुलपति डॉ. शशिकांत त्रिपाठी जी, प्रभारी शिक्षा विभाग डॉ. नीतू तिवारी जी, सहायक आचार्य एवं एमओयू प्रभारी डॉ. रजनीश कुमार सिंह जी,
सहायक आचार्य फाइन आर्ट डॉ. संध्या पांडे जी, अधिष्ठाता शिक्षा संकाय डॉ. निहार रंजन मिश्रा जी, को दिव्य गंगा सेवा मिशन की ओर से गंगा जी का चित्र भेंट कर सम्मानित किया गया। सभी के हृदय में एक ही संकल्प मुखर था विद्यार्थियों के लिए अवसरों का विस्तार और शोध–सेवा का नया क्षितिज स्थापित करना।
विभिन्न संकायों के प्राध्यापकों के साथ हुए संवादों में संयुक्त परियोजनाओं, अंतर्विषयक शोध संभावनाओं और भविष्य के नवाचारों पर अर्थपूर्ण चर्चा हुई। उनकी सरलता और समर्पण ने प्रवास की दिशा और भी सार्थक बना दी। यदि इस यात्रा ने शिक्षा और सहयोग की नींव मजबूत की, तो साहित्यिक संवेदना का द्वार खोला वरिष्ठ साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध लेखक आदरणीय प्रमोद दीक्षित मलय जी से हुई प्रेरणादायक भेंट ने। चित्रकूट की रमणीय पृष्ठभूमि में उनसे हुई मुलाकात एक अमूल्य स्मृति बन गई। मलय जी द्वारा पटका उढ़ाकर किया गया सम्मान भावनाओं को छू गया। साथ ही उन्होंने अपनी अनुपम कृतियाँ ‘शिक्षा के पथ पर विद्यालय में एक दिन यात्री हुए हम सप्रेम भेंट कीं। यह मेरे लिए साहित्य और शिक्षाशास्त्र की अनमोल निधि हैं। हमारी ओर से भी उन्हें पटका उढ़ाकर तथा गंगा जी का पवित्र चित्र अर्पित किया गया। यह सौहार्दपूर्ण क्षण सादगी में जितना सरल था, गरिमा में उतना ही भव्य लगा।
साहित्य, शिक्षा और मानवीय मूल्यों पर उनसे हुई विस्तृत चर्चा ने इस प्रवास को एक ऊँचे वैचारिक आयाम से जोड़ दिया। उनकी दृष्टि, अनुभव और सहज आत्मीयता लंबे समय तक प्रेरणा का स्रोत रहेंगी।
यह चित्रकूट यात्रा केवल कार्यक्रमों की श्रृंखला नहीं थी, बल्कि एक ऐसी अनुभूति थी जिसमें सेवा की भावना, शिक्षा का विस्तार, साहित्य की गरिमा और मानवीय संवेदनाएँ सब एक साथ विकसित होती रहीं। चित्रकूट की शांत वसुंधरा और वहां के संतुलित वातावरण ने इस पूरे अनुभव को और भी पवित्र, प्रेरक और अविस्मरणीय बना दिया।



